हुमायूँ का मकबरा (Humayun's Tomb) इमारत परिसर मुगल आर्किटेक्चर का बेहतरीन नमूना है. हुमायूं का मकबरा दिल्ली के हजरत निामुद्दीन रेलवे स्टेशन के करीब है. हुमायूं के मकबरे के करीब निजामुद्दीन, जंगपुरा और जेएलएन स्टेशन हैं. यहां तक पहुंचने के लिए मैने जंगपुरा मेट्रो स्टेशन चुना था. वापसी के समय मेट्रो तक ई-रिक्शा मिल जाएंगे जो आपको जेएलएन मेट्रो स्टेशन तक पहुंचाएंगे.
हुमायूँ का मकबरा (Humayun's Tomb), नाम से ही आपको पता लग गया होगा कि इसमें मुगल सम्राट हुमायूं की कब्र है. हुमायूँ के मकबरे में मुगल परिवार से जुड़े कई राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। भारत में मुगल वास्तुकला का यह पहला नमूना है. मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसके आधार पर भविष्य में ताजमहल बना. मकबरे को हुमायूं की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेश पर 1562 में बनवाया गया था. मकबरा बनाने के लिए अफगानिस्तान से कारीगरों को बुलाया गया था. इन कारीगरों के ठहरने की व्यवस्था मकबरे के अंदर बने अरब की सराय में की गई थी. इस इमारत को बनाने में 8 साल का समय लगा.
जन्नत की नदियों की ही तरह इसके चारो तरफ पानी के फव्वारे बनाए गए हैं. इमारत की खासियत का अंदाजा आप इस से लगा सकते हैं कि कैसे लाल पत्थरों में संगमरमर के पत्थर जड़े गए हैं. हुमायूँ की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राटों की कब्रें भी यहां स्थित हैं. यहां 100 से भी ज्यादा कब्रे हैं. लेकिन ज्यादा तर पर कोई नाम नहीं लिखा है जिससे दफन हुए व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
बाहर से यह इमारत जितनी सरल दिखती है अंदर से यह उतनी ही जटिल है. मुख्य इमारत एक गुंबद है. इसमें गुम्बद के नीचे एकदम मध्य में आठ किनारे वाले एक जालीदार घेरे में मुगल सम्राट हुमायुं की कब्र बनी है. लेकिन हॉल में बना हुआ मकबरा हुमायूं की असली कब्र नहीं है. बल्कि असली कब्र ठीक नीचे के आंतरिक कक्ष में बनी है. जिसके लिए रास्ता नीचे से है. हालांकि वहां आम पर्यटकों को जाने नहीं दिया जाता है.
पूरे कैंपस के बाहर नीला गुंबद बना है. इसके अंदर जाने पर आपको यह बिल्कुल नहीं लगेगा कि इसमें किसी की कब्र भी है. मुझे भी ऐसा ही लगा था. लेकिन ये मकबरा अकबर के दरबारी बैरम खां के बेटे अब्दुल रहीम खानेखाना ने अपने सेवक मियां फ़हीम के लिये बनवाया था।
हुमायूं के मकबरे की एक हैरान करने वाली बात यह है कि 18वीं शताब्दी में मुगल बादशाह के पास इतनेपैसे नहीं थे कि वह बागों का रखरखाव कर सकें. उस समय लोग बागानों में सब्जियां उगाने लगे थे. साथ ही चारो ओर फैली नालियों में भी पेड़ पौधे उग आए थे. मकबरे की किस्मत एक बार फिर तब बदली जब ब्रिटिश इंडिया में लॉर्ड कर्जन भारत के वायसराय बने. उस समय नालियों में बलुआ पत्थर लगाया गया और मकबरे को फिर से सुंदर बनाने का काम शुरू हुआ. भारत के विभाजन के समय, अगस्त, १९४७ में पुराना किला और हुमायुं का मकबरा भारत पाकिस्तान से आने वाले लोगों के शर्णार्थी कैंपों में बदल गया. 5 सालों तक यहां रिफ्यूजी कैंप रहे.
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